डाटला एक्सप्रेस की प्रस्तुति
तेरे जाने से दिल बेकरार भी नहीं।
तेरे आने का अब इंतज़ार भी नहीं।
तुझे पाने की ख्वाईश क्या होगी अब,
तेरी चाहत का तलबगार भी नहीं
गुजरते हैं हम उन रास्तों से कभी,
आती अब उनमें पुकार भी नहीं।
तेरा ग़म ये मुझे डराएगा भी क्या,
मेरे डर का याँ कोई दयार भी नहीं।
न लिखावट है कोई ना इबारत ही,
तेरे ख़त का तो अब इंतज़ार भी नहीं।
"चन्द्रेश' कैसे दिल टूटेगा ये,
अब तक इसमें तो दरार भी नहीं।
लेखिका:-चन्द्रकांता सिवाल 'चन्द्रेश', करोल बाग (दिल्ली)