'दलेस' के मंच पर 'स्त्रियां अब प्रेम नहीं करतीं' का लोकार्पण व चर्चा।



डाटला एक्सप्रेस संवाददाता 

रिपोर्ट:-चमनलाल नागर 

दलित लेखक संघ के तत्वावधान में दिनांक 23 अक्तूबर 2022 को हीरालाल राजस्थानी के काव्य संग्रह 'स्त्रियां अब प्रेम नहीं करतीं' का लोकार्पण व चर्चा का आयोजन बीटीआर भवन दिल्ली के सभागार में चंद्रकांता सिवाल की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि सुभाषचन्द्र कानखेड़िया, विशिष्ठ अतिथि जयप्रकाश कर्दम और मदन कश्यप, वक्ताओं में प्रेम तिवारी, डॉ. राजकुमारी, रजनी अनुरागी, डॉ. चंद्रसेन शामिल रहे। 

चंद्रकांता सिवाल ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में दलित लेखक संघ की वैचारिकी को सामने रखते हुए इसके 25 वर्षों में संस्थापक सदस्यों के प्रयासों को याद करते हुए कहा कि हम बुद्ध, फुले, आंबेडकर के मार्ग पर चलते हुए अपने दायित्व का निर्वहन करते आ रहे हैं। इस कड़ी में आज हीरालाल राजस्थानी के काव्य संग्रह 'स्त्रियां अब प्रेम नहीं करतीं' पर उन्होंने कहा कि यह संग्रह स्त्रियों में जागृति लाने का काम करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। शीर्षक कविता कबीले तारीफ़ है जो समाज में स्त्रियों की मनोदशा को सामने लाती है। दलित साहित्य में किसी पुरुष द्वारा लिखा गया यह पहला काव्य संग्रह है जो पूर्णतः स्त्रियों पर केंद्रित किया गया है। इसमें स्त्री के बाहरी और आंतरिक भावों को न सिर्फ कलमबद्ध किया गया है बल्कि संवैधानिक हकों की बात को भी उठया गया है। जो इस संग्रह का मज़बूत पक्ष है। इस अवसर पर उन्होंने पुस्तक में दी गई बजरंग बिहारी तिवारी की भूमिका का कुछ अंश भी पढ़ा तथा इस काव्य संग्रह के लिए कवि को बधाई भी प्रेषित की। 

मुख्य अतिथि सुभाषचंद्र कानखेड़िया ने अपने उद्बोधन में कहा कि कविताएं कवि की नेक राय होती हैं। हम उन्हें कितना समझते हैं, कितना आत्मसात करते हैं। समाज और विचार की यही एक धुरी है जिसका असर धीरे-धीरे समाज को बदलने का काम करता है। बेशक यह काव्य संग्रह इसका दम रखता है।

विशिष्ठ अतिथि दलित साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम ने अपने उद्बोधन में कहा कि साहित्य के द्वारा सवाल उठाना एक ज़रूर चीज़ होती है। जो इस संग्रह में उठाए गए हैं और कोई भी रचना मुकम्मिल नहीं होती। रचनाकर समय के बोध में जो देखता है वही अपने समय में दर्ज़ करता है। कुछ छूट भी जाता है इस कारण कवि को दोष नहीं दिया जा सकता। इस ओर पुरुष लेखक कम ही ध्यान देते हैं। शीर्षक कविता एक सवाल भी है और जवाब भी। सवाल ये है कि क्या पुरुष प्रेम करता है? क्या वह शरीर से प्रेम करता है या मनुष्यता से प्रेम करता है? या फिर प्रेम का आदान प्रदान होता है? उन्होंने आगे कहा कि स्त्रियां रिश्तों से प्रेम करती हैं उसे मनुष्यता कहीं दिखाई नहीं देती। हमारी समाज व्यवस्था ने हमें मनुष्य नहीं बनने दिया जिस पर कवि मुखर है। ये व्यवस्था ईश्वर से तो प्रेम करना सिखाती है लेकिन मनुष्य से नहीं। वर्जनाओं के बीच प्रेम संभव ही नहीं। पुरुषसत्ता पर जो सवाल इस संग्रह में उठाए गए हैं वे जायज़ हैं लेकिन जातिगत सत्ता भी इसकी दोषी हैं। वर्चस्व की भावना ने ही प्रेम का हवास किया तब ही दमनचक्र शुरू हुआ। हमें प्रेम के लिए साथी चाहिए न कि स्त्री-पुरुष के रूप में पति-पत्नी का नियंत्रण। ये कविताएं नए विमर्श के लिए गुंजायश छोड़ती है। मैं इस संग्रह की यही उपलब्धि मानता हूं।

विशिष्ठ अतिथि कविता आलोचक मदन कश्यप ने अपने उद्बोधन में कहा कि अब तक जो दलित कविता लिखी जाती रही है उसमें दलित वर्ग और अस्मीतावादी कविताएं जो जायज सवाल उठाते हुए लिखी गई है लेकिन इस संग्रह में अस्मिता का विस्तार हुआ है दूसरा इसमें आत्मलोचना को भी स्थान मिला है, जो पहली बार इनकी कविताओं में दर्ज़ हुआ है। इसमें अनुभव के साथ संवेदनाओं का भी विस्तार है। जिसे व्यापकता में देखा जाना चाहिए। यह संग्रह दलित अस्मिता और जन सामान्य लेखन का फ्यूजन वर्क है। जो अद्भुत है। एक कविता में "शब्दसेना" के रूप में एक नया शब्द गढ़ा गया है जो कई नए संदर्भों को खोलता है। इस संग्रह में साहस और सौंदर्य दोनों साथ दिखाई देते हैं, स्त्रियों की करुणा ही नहीं बल्कि विडंबना को भी व्यक्त किया गया है। यह मिश्रण बहुत मायने रखता है।


कवि चंद्रसेन ने अपने वक्तव्य में कहा कि हीरालाल राजस्थानी भाषा के स्तर पर सुघड़ और सरल तथा रूपक और प्रतीक गढ़ने में दक्ष हैं जो बहुत नए और अद्वितीय हैं। इनकी कविताएं सीधे मन-मस्तिष्क पर दस्तक देती है व स्त्री स्वतंत्रता की झटपटाहट को बहुत बारीकी से उकेरती है। जो दलित कविताओं को कलाविहीन समझते आए हैं उन्हें यह संग्रह ज़रूर पढ़ना चाहिए।

बतौर वक्ता युवा लेखिका डॉ. राजकुमारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि कवि स्त्रियों के प्रति संवेदनशील है और स्त्रियों की व्यथा लिखने में कामयाब दिखाई पड़ते हैं। स्त्रियों के भाग्यवाद को भी बहुत गहरे से उभारा है। कवि ने विनम्रता को स्त्री के पक्ष में रखा है। इस संग्रह को सहानुभूति के तौर पर लेना चाहिए। कवि स्त्रियों को आडंबर से बाहर निकालने का मार्ग प्रशस्त करता है। शोषण के विरुद्ध कवि खड़े दिखाई देते हैं, उनकी कथनी-करनी में ज़रा भी अंतर नहीं लेकिन यह अंतर अक्सर लेखकों के जीवन में देखा गया है। कवि ने इस संग्रह की एक कविता में सही ही लिखा कि आधुनिकता वस्त्रों से नहीं विचारों से आती है। 

वक्ताओं में कविता आलोचक प्रेम तिवारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि कवि हीरालाल राजस्थानी ने अपने काव्य संग्रह 'स्त्रियां अब प्रेम नहीं करतीं' में स्त्रियों की दुर्दशा को बखूबी दर्शाया है। यह संपूर्ण संग्रह स्त्रियों के जीवन संघर्ष की गाथा है। ये ऐसी पहली किताब है जो किसी पुरुष द्वारा लिखी गई है जो व्यवस्था की लक्ष्मण रेखा को पार करने का मुक्ति मार्ग प्रशस्त करती है।

स्त्रीवादी कवि रजनी अनुरागी ने अपने वक्तव्य में कहा कि सोच लिखने और व्यक्त करने में बहुत अंतरविरोध होता है इसमें स्त्री जीवन को जाति, वर्ण, लिंग के आधार पर बांटा गया इस कारण उनके उत्पीड़न भी अलग-अलग हैं। कवि इससे अलग मध्यम मार्ग को लेकर चलते हैं। लेखक चयन के अधिकार को महत्व देते हैं उनकी एक कविता "बहन तू कुछ भी पहन" में यही बात उभरती है। वे चाहते हैं कि 'बहन तू कुछ भी पहन' के स्थान पर 'बहन तू कुछ भी कर' को परिवार में स्थापित करना चाहते हैं जो व्यवस्था को बदलने का संकेत है। यह काव्य संग्रह स्वागत है लेकिन मुझे लगता है, कविताएं अभी और विस्तार की मांग करती हैं।

हीरालाल राजस्थानी ने इस संग्रह की शीर्षक कविता 'स्त्रियां अब प्रेम नहीं करतीं' के साथ शुरू की तीन कविताओं का पाठ कर और अपने मंतव्य में कहते हैं कि भोगे हुए यथार्थ के साथ देखे हुए यथार्थ का महत्व भी न्याय के लिए उतना ही ज़रूरी है जितना शिक्षक और विद्यार्थी के लिए अध्ययन की ज़रूरत होती है। बिना साक्ष्य के भोगे हुए यथार्थ को साबित करना उतना ही मुश्किल है जितना बिना परीक्षा के पास होना।

रचनाकार पर आलेखपाठ सत्या सिद्धार्थ ने किया। कार्यक्रम का संचालन चमनलाल नागर ने तथा धन्यवाद ज्ञापन रवि महिंद्रा ने किया। विशेष उपस्थिति में- जसम से जुड़े आशुतोष कुमार, वरिष्ठ दलित कविता आलोचक शेखर पवार, जलेस के दिल्ली अध्यक्ष बली सिंह, समाजसेवी अशोक निर्वाण, हरवंश राजोरा, शिवचरण सूर्यवंशी, सुनीता राजस्थानी, अभिनेत्री गीतिका डीगवाल, धीरज कुमार सिंह, बलविंद्र सिंह बलि, हंसराज बड़सीवाल, आलोक शर्मा, मुकेश राजोरा, तरुण महामना, ललिता महामना, विक्रांत, संजय चौहान, प्रतिष्ठा, अल्का निम, मुकेश कुरडिया, विशाल आदि रहे।

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