डाटला एक्सप्रेस की प्रस्तुति
बंदिश में जीना, मरना है
फिर क्यों बंदिश से डरना है
सोच लिया है इसीलिए अब
जो मन कहता वह करना है
दुख की गहरी झील हुआ दिल
अधिक न अब इसको भरना है
अश्क बनो हर दुख से कह दें
आँखों से जीभर झरना है
अपना अपना हित है सबका
दोष किसी पर क्यों धरना है
दुनिया से उम्मीद न कीजे
अपना संकट खुद हरना है
मोह न पाल किसी से "अंचल"
इक दिन इस भव से तरना है।।।
ममता शर्मा "अंचल"