दलेस ने पहला "दलेस कीर्ति सम्मान" चित्रकार चित्रपाल को 25 वां स्थापना दिवस रजत जयंती समारोह में प्रदान किया।



प्रस्तुति डाटला एक्सप्रेस 

दलित लेखक संघ के 25 वें स्थापना दिवस के अवसर पर रजत जयंती और पहला "दलेस कीर्ति सम्मान" समारोह एफ -19 ज्योतिबा फुले सभागार कनॉट प्लेस दिल्ली पर सम्पन्न हुआ।

डॉ राजकुमारी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। डॉ कुसुम वियोगी मुख्य अतिथि और के पी चौधरी विशिष्ट अतिथि के तौर पर कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।

वरिष्ठ चित्रकार चित्रपाल जी को कला के क्षेत्र में उनके महती योगदान के लिए सर्वसम्मति से पहला " दलेस कीर्ति सम्मान " दिया गया । जिसमें शाल, प्रशस्ति पत्र , दलेस का प्रतीक चिन्ह और 5100 रुपये की सम्मान राशि चित्रपाल जी को भेंट की गई तथा इस अवसर पर उनके चित्रों का स्लाइड शो भी दिखाया गया।

कार्यक्रम के दूसरे भाग में दलित लेखक संघ के 25 वर्षों के सफर की एक स्मारिका का विमोचन हुआ जिसे अमित धर्मसिंह ने हीरालाल राजस्थानी के सहयोग से तैयार किया है ।

कार्यक्रम के तीसरे सत्र में अमित धर्मसिंह द्वारा संपादित दलित लेखक संघ के मुखपत्र 'प्रतिबद्ध' का विमोचन हुआ ।

कार्यक्रम के चौथे सत्र में 'अभिव्यक्ति की आज़ादी के मायने' विषय पर एक परिचर्चा हुई । जिसमें विभिन्न संगठनों से आये प्रबुद्ध वक्ताओं ने अपनी बात रखी । दलेस अध्यक्ष डॉ. राजकुमारी ने रजत जयंती की बधाई देते हुए मौजूदा समय में अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर अपनी चिंता जाहिर कर कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी लोकतांत्रिक समाज और व्यवस्था की पहचान है । यदि यह पहचान किसी भी तरीके से दबाई जाएगी तो यह बेहद चिंताजनक स्थिति है । चित्रपाल ने अपने समय , समाज और जीवन संघर्षों को याद करते हुए वार्ष्णेय कॉलेज की यादों को सबके साथ साझा किया तथा उनके शिष्य राजपाल सिंह ने उनके सम्मान में एक कविता का पाठ किया। डॉ. कुसम वियोगी ने साहित्यिक क्षेत्र में उठने वाली बहसों के संदर्भ में अपनी बात रखते हुए साहित्यकारों के बीच विभिन्न अंतर्विरोधों को दूर करने की बात की । के पी चौधरी ने कहा कि राष्ट्र निर्माण की चुनौतियों से एक लंबी लड़ाई लड़ी जाना अभी बाकी है । इसके लिए हमें अपने निजी हितों को त्याग कर मानव कल्याण हेतु आगे बढ़ना होगा । हीरालाल राजस्थानी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि इस मौजूदा समय में दलितों पर मनुवादियों द्वारा अत्याचार, उत्पीड़न सियासी और सामाजिक स्तर पर अपने चरम पर है। आए दिन बलात्कार की घटनाएं घट रही है। बिल्कुल यह समय अलग अलग ढोल ढपली बजाने का नहीं है । जिस तरह का मनमाना रवैया राजनीतिक गलियारों से निकल कर समाज को नियंत्रित कर रहा है हम सबको उसके चरित्र को समझ कर एक जुट होना होगा। सावी सावरकर (क्रांतिकारी दलित चित्रकार ) ने कुछ संस्मरणों के साथ अपनी यादें साझा करते हुए कहा कि सत्य को अभिव्यक्त करना आज के समय का सबसे बड़ा जोखिम है । यह करो या मरो वाली स्थिति है । एक बार उनके द्वारा बनाये चित्रों पर कुछ आस्थावान लोगों ने चाकू से हमला किया । अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बात करना जोखिम उठाने के लिए आगे बढ़ना है । संजीव कुमार (जलेस) ने बात को आगे बढाते हुए कहा कि कोई विचार आसमान से नहीं टपकता है । उसके पीछे भौतिक परिस्थितियों के जटिल और गहरे अंतर्विरोध काम करते हैं । हमें यह समझना होगा कि आज सत्ता के इशारे पर जनता का रक हिस्सा अभिव्यक्ति की आज़ादी के विरुद्ध खड़ा नज़र आता है तो ऐसा क्यों है ? सजंय जोशी (प्रतिरोध का सिनेमा) ने फ़िल्म और कला के क्षेत्र के संदर्भ में समकालीन चुनौतियों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि सिर्फ मनोरंजन के आधार पर समाज का निर्माण नहीं हो सकता है । दबी हुई आवाज़ों को स्पेस मिलना चाहिए । सत्य को खुलकर मुख्य भूमिका में आना होगा । मनोज मल्हार (शोशल इनिशिएटिव) ने कहा कि हमें यह तय करना होगा कि हम किस ओर हैं ? हम क्या कहना चाहते हैं ? और हम क्या कह रहे हैं ? कहीं इन दोनों में कोई फर्क तो नहीं है ! मनीष कुमार(इप्टा) ने कहा कि मनुष्य होना पहली शर्त है । मनुष्य हुए बिना अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब समझना मुश्किल है । राजेश पाल (भाजलेस , देहरादून) ने अभिव्यक्ति की आज़ादी के मार्ग में मनुवाद और पूंजीवाद को बड़ी बाधा के रूप में रेखांकित किया। हमे राजनीतिक और सामाजिक दोनों लड़ाई एक साथ लड़ने की जरूरत है। बजरंग बिहारी (दलित चिंतक ) ने कहा कि प्राथमिकताएं तय करनी होंगी । लड़ाई अब इतनी आसान रही नहीं । हम छोटी छोटी सुविधाओं और अवसरों के लालच में पड़कर सत्य कहने और सत्य का साथ देने में बचने की कोशिश करते हैं । बोलने का संकट नहीं है । सत्ता जो चाहती है वैसा आप खुलकर बोल सकते हैं । धमकी दे सकते हैं । झूठ तक बोल सकते हैं । लेकिन असली संकट है जनता की बात कहने का । दलित मज़दूरों की बात कहने का । सत्ता मन की बात कहने और सुनने की हिमायती है लेकिन हमें जन की बात कहनी और सुननी है । रवि निर्मला सिंह ( दलेस) ने कहा कि समय की चुनौतियों के विरुद्ध हमारी विचारधारा स्प्ष्ट है । हम सार्वभौमिक न्याय के पक्ष में खड़े हैं । हमेशा खड़े रहेंगे । हमारा साध्य बाबा साहेब के सपने राजकीय समाजवाद को सच करना है । इसके लिए हम सभी लोकतांत्रिक आवाज़ों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं । और आगे भी करते रहेंगे । 

घोषणा 

कुसुम वियोगी ने घोषणा की कि अब आगे 'दलेस कीर्ति सम्मान ' के लिए वह संगठन को 11000 रुपये प्रतिवर्ष सहयोग करेंगे ।

मामचंद रिवाड़िया ने घोषणा की कि वह संगठन को 100000 रुपये की एफ डी सहयोग करेंगे जिससे मिलने वाले सालाना ब्याज से उनके जन्मदिवस 17 जुलाई के अवसर पर संगठन प्रतिवर्ष कला , साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले किसी एक व्यक्ति का सम्मान करने का अधिकारी होगा ।

उपाध्यक्ष चन्द्रकान्ता सिवाल चन्द्रेश ने संविधान की प्रस्तावना एवम स्वरचित दोहों के पाठ से कार्यक्रम में उपस्थित सभी सदस्यों का स्वागत किया ।


अभिनंदन है आपका, सादर ओ सत्कार।

भाव समर्पण आपका, हम पर है उपकार।।

दलित लेखक संघ का, सघन सरस अभियान।

फूँक रहा नर नारी में, निज का स्वाभिमान।।

रजत जयंती मना रहा,है दलेस परिवार।

धन्यवाद की पात्र है, कलमकार की धार ।।

पच्चीसवीं है जयंती, दलेस कीर्ति मान।

आजादी का है दिवस, राष्ट्र धवन की शान।।

आलेख पाठ जावेद आलम खान ने किया।


मंच संचालन सरिता संधू और रवि निर्मला सिंह ने किया 

धन्यवाद ज्ञापन रवि निर्मला सिंह ने किया । कार्यक्रम में वरिष्ठ दलित साहित्यकार मामचंद रिवाड़िया ,सुनीता सांवरिया , गुलफ्शा सिद्दकी , डॉ गीता , कुसुम सबलानिया, सतीश खनगवाल , सुदेश तंवर , सुनीता वर्मा, अरुण गौतम, दिनेश आनंद, जगदीश पंकज, राजेंद्र कश्यप, सतपाल राठी , सतीश राठी , दिल्ली प्रांतीय रैगर पंचायत के सम्मानित प्रतिनिधि, दिल्ली से बाहर के लेखक, संस्कृतिकर्मि और समाजसेवी सम्मिलित हुए।

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