स्त्री शक्ति स्वरूपा है
जगत रूपा है।
स्त्री की महिमा जग में अपार
थामी है उसने घर की पतवार
उसमे समाया ममता का सागर
जीवन भर भरती सदा स्नेह की गागर।
प्रेम दया करुणा की है मूर्ति
करती है हर रूपों में पूर्ति।।।
स्त्री ही है पालनहार
उसी से है जन्मा सकल संसार।
स्त्री शक्ति की ललकार है
स्त्री दुर्गा,लक्ष्मी, है सरस्वती की झंकार
समय आने पर बन जाती है काली का अवतार।
स्त्री बढ़ा रही है कदम अपने आगे
आने वाली पीढ़ियों के भाग जागे
स्त्री को भी देनी पड़ती है सीता की अग्निपरीक्षा।
इस युग में भी है राम का स्वरूप।
ढलना पड़ता है उनके अनुरूप।
मां ,बहन, बेटी है जग का सार।
मिलता है उन्हें उतना ही प्यार।
स्त्री है सबसे न्यारी.....
है वो हर सम्मान की अधिकारी
डॉक्टर भावना शुक्ल "नोएडा"
प्रस्तुति डाटला एक्सप्रेस/8800201131,9810862251
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