इलाहाबाद के दिनों की एक और यादगार बात जब मैं कोई पंद्रह किलोमीटर साइकिल चलाकर बमरौली एयरफ़ोर्स स्टेशन अपना पसन्दीदा ‘ओल्ड मॉन्क’ रम लेने जाता था।तब ये अड़तालीस रूपये में मिल जाते थे।रात को अपने डेलीगेसी में गुनगुना पानी के साथ लेकर मैं हॉब्स, लॉक, रूसो जैसे दार्शनिकों को पढ़ा करता।ये सिर्फ़ एक रम नहीं था।ये एक जज़्बात था।तीन पैग के बाद एकटक चाँद को देखा करता।उन दिनों सर्दी की रातों में ओल्ड मॉन्क और गोल्ड फ़्लेक सिगरेट का कॉम्म्बिनेशन बैचलर्स के लिए वही मायने रखता था जो सत्तर के दशक में अमिताभ रेखा, राजेश खन्ना शर्मीला टैगोर और आर.डी. बर्मन किशोर कुमार का कॉम्बिनेशन मायने रखता था।एक अजूबा पेय पदार्थ,ऐसा पवित्र और सच्चा 'बूढ़ा सन्यासी' देने के लिए कपिल मोहन जी को शुक्रिया और भावभीनी श्रद्धांजलि। ठीक पंद्रह साल पहले ग़ाज़ियाबाद में अपने एक रिश्तेदार के पास इन्हीं मौसम में रूका था जहाँ से दो बार मोहन मीकिन्स फ़ैक्टरी में जाना हुआ था और एक बार पद्मश्री कपिल मोहन जी को देखने का मौक़ा मिला था।
अपने महबूब के लिए तो कोई भी शक्ल अख़्तियार किया जा सकता है। आज अपने ‘बूढ़े सन्यासी’ को अपनी ही एक तस्वीर से भावभीनी श्रद्धॉंजलि दे रहा हूँ। साथ में एक शेर भी
मयकदे में अज़ां सुन के रो दिया बहुत
इस शराबी को दिल से ख़ुदा याद है
राकेश राय "पत्रकार एवं समाजसेवी