रजनी

 


नील रजनी कामिनी निखरी मृदुल अहसास से,
रीझ नीरज रूप पर तन चूमती उल्लास से।


शुभ्र मणिका देह झिलमिल ओढ़ चूनर दमकती,
देख आनन ताल दर्पण श्याम वसना सँवरती।
तारिकाएँ माँग भर कुंतल सजाती साँवरी,
अंक में भर चाँद को पल-पल लजाती बावरी।
रातरानी सी महकती नरगिसी आभास से,     
नील रजनी कामिनी निखरी मृदुल अहसास से।


तुहिन कण मुक्तक लुटाकर नेह छितराती रही,
मोद मधुरिम दे युगल को मंद मुस्काती रही।
खिड़कियों से झाँकते कुछ मचलते अरमान हैं,
पा विरह की वेदना कुछ टूटते इंसान हैं।
बेख़बर है जग समूचा सो रहा विश्वास से,
नील रजनी कामिनी निखरी मृदुल अहसास से।


शांत,शीतल,सौम्य,कोमल भाव रखती यामिनी,
शून्य चेतन हर पहर में गुनगुनाती रागिनी।
काम,भोगी,क्लांत जन विश्राम पाते हैं सभी,
खोल गठरी याद की खुद को रुलाते हैं कभी।
स्वप्न पथगामी बनी निद्रा कराती आस से,
नील रजनी कामिनी निखरी मृदुल अहसास से।


त्यागकर अस्तित्व निज सूरज उगाकर सुख दिया, 
तिमिर को सहचर बनाया पीर सहकर दुख लिया।
मौन अधरों पर बसा कैसे बताए ये व्यथा,
द्रोपदी सम केश खोले क्या सुनाए ये कथा।
देखकर व्यभिचार चाहे कुछ नहीं मधुमास से,
नील रजनी कामिनी निखरी मृदुल अहसास से।




डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
वाराणसी (उ. प्र.)
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प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस/प्रत्येक बुधवार/ग़ाज़ियाबाद/ 29 जनवरी से 04 फरवरी जनवरी 2020/व्हाट्सप 9540276160/मेल: rajeshwar.azm@gmail.com एवं datlaexpress@gmail.com/संपादक: राजेश्वर राय 'दयानिधि'


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