संताने


कोई बेटी बाप को अपने, 
प्यार में ही बदनाम करे। 
कोई बाप का कोई अपना, 
प्यार में काम तमाम करे। 
कितने उम्मीदों के दर्पण, 
मार के पत्थर फोड़ दिये। 
मानव ने मजहब से मिलकर, 
कितनों के दिल तोड़ दिये। 


संतानों ने कत्ल किया है, 
मात् पिता की आशा का। 
अर्थ बदलकर रख डाला है, 
प्रणय की परिभाषा का। 
क्षणिक सुखों की खातिर, 
कितने रिश्ते क्षय से जोड़ दिये ।
मानव ने मजहब से मिलकर, 
कितनों के दिल तोड़ दिये।


धर्मों की चाकू से घायल, 
प्रेम सिसक कर रोता है। 
वार प्रेम पर धर्म हवस का, 
जोर जोर से होता है।
कितनों ने घर प्रेम की ख़ातिर, 
मजबूरी में छोड़ दिये। 
मानव ने मजहब से मिलकर, 
कितनों के दिल तोड़ दिये।


कोई लड़का झूठ बोलकर, 
लड़की से ही घात करें। 
कोई लड़की फोन से अपने, 
दस लड़कों से बात करे ।
प्रेम  के सारे संबंधों को, 
स्वार्थ से अब जोड़ दिये। 
मानव ने मजहब से मिलकर, 
कितनों के दिल तोड़ दिये।



       रचयिता 
किशनू झा "तूफान"
दतिया/मध्य प्रदेश  
8370036068
________________________________
(प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस/साप्ताहिक/गाज़ियाबाद (उ०प्र०) 01 अगस्त 2019/प्रत्येक बुधवार/संपादक: राजेश्वर राय 'दयानिधि'/email: rajeshwar.azm@gmail.com/datlaexpress@gmail.com/दूरभाष: 8800201131/व्हाट्सप: 9540276160


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