वन उपवन महके कोयल ने मीठा गीत सुनाया है
रिमझिम रिमझिम बूँदों ने चित में अनुराग जगाया है।।
वृक्षों पर झूले, सारंग नाँचते हैं पल पल खिलकर
खुशियाँ लेकर लो फिर से मन भावन सावन आया है।।
हल लेकर चल पड़ा मुरारी धरती को जब तर देखा।
बीज रोपने का प्रण लेकर पिछला दर्द भुलाया है।।
सुकूँ मिला हो गया भरोसा खेतों में उत्सव होगा
कुदरत ने वत्सल थपकी दे मीठी नींद सुलाया है।।
सजी हुई है आज कलाई भाग्यवान खुद को कहती
बहना की राखी ने छूकर ये अहसास कराया है।।
घेवर, फीणी, अनगिन व्यंजन बाजारों की रौनक हैं
भोला हलवाई ने हँस हँस सबका भाव बताया।।
पला हुआ मधुमेह देह में चाहे सुगना ताई के
पर देखा पकवानों को तो मुंह में पानी आया है।।
सच्चे मीत लाडले सावन दुनिया तुम पर बलिहारी
जब जब भी प्रिय तुम आए धरती को स्वर्ग बनाया।।
लेकिन एक शिकायत "अंचल" की भी प्यारे सावन
सुनो वर्ष भर काहे तुमने मिलने को तरसाया है।।
ममता शर्मा "अंचल"
अलवर (राजस्थान)
प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस
08/08/2019/बृहस्पतिवार