शुभम गदाधर महाबल , गौरीसुत गजनान ।
वंदन करता आपको , 'सुर' भूपति भगवान ।।
सुर हाथों को जोड़कर , ये करता अरदास ।
माँ दुर्गा नारायणी , रहना हरदम पास ।।
मैया का गुणगान जो , करते हैं दिन रात ।
उनके घर में हो सदा ,ख़ुशियों की बरसात ।।
मासूमों को नोचते , धरती पर मक्कार ।
माँ चंडी का रूप धर, आओ फिर इक बार ।।
हर दिन मैया आपका , करता है जो जाप ।
पास रहे उसके ख़ुशी , दूर रहें सन्ताप ।।
भक्तों को राहत मिली ,सुखी हुए सब सन्त ।
माँ दुर्गा ने जब किया , महिषासुर का अंत ।।
भूल मातु मुझसे हुई , सर पर रख दो हाथ ।
गर्दन कटती देखकर , बोले भैरोनाथ ।।
चलो त्रिकूट पहाड़ पर , मैया जी का वास ।
कहते हैं पूरी वहाँ , होती सबकी आस ।।
अनुगत श्रीधर सा सही , बनिए तो श्रीमान ।
घर में आएँगी स्वतः , माँ देने वरदान ।।
आओ बैठो नाव है , चलने को तैयार ।
माँ गौरी ले जा रहीं , भवसागर से पार ।।
जिससे डरती धूप भी ,वो तरूवर की छाँव ।
माता का दरबार 'सुर' ,सबसे सुंदर ठाँव ।।
तारा रानी की कथा , सुनता जो इंसान ।
जगराते की रात वो , हो जाता धनवान ।।
सप्तशती का पाठ जो , करता है इंसान ।
माँ दुर्गा उसकी करें , हर मुश्किल आसान ।।
माँ दुर्गा सुरसुन्दरी , काली ऐ सुखधाम ।
सब तेरे ही रूप हैं , कितने सुंदर नाम ।।
रखतीं उस इंसान पर ,मैया करुणा ख़ास ।
नौ दिन जो नवरात्र में , रखता है उपवास ।।
जो हर पल सुर सोचते , आना तेरे द्वार ।
मैया उनको भी बुला , तू अपने दरबार ।।
जीवन भर मत छोड़ना, माँ दुर्गा का हाथ ।
पत्ते रहते वो हरे , जो तरूवर के साथ ।।
घर में चौकी पूजता ,जो नित प्रातः शाम ।
उसके नौ दिन में सभी,बनते बिगड़े काम ।।
माता ने जग को दिया सुर यह भी सन्देश ।
घर पूजो हनुमान को , दूर रहेंगे क्लेश ।।
शक्तिहीन लाचार थे, होकर भी बलवान ।
माँ ने भैरोनाथ का ,जब तोड़ा अभिमान ।।
मैया के दरबार में , पूरी हो हर बात ।
पर उतना ही माँगना जितनी हो औक़ात ।।
जितने प्यारे नाम हैं , उतने सुंदर रूप ।
तू गर्मी में छाँव है , माँ सर्दी की धूप ।।
माँ को आना ही पड़ा,देख भक्त का प्यार ।
ध्यानू ने जब रख दिया,अपना शीश उतार ।।
चलो चलें हम काँगड़ा ,माँ ज्वाला के धाम ।
एक नारियल भेंट से , बनते बिगड़े काम ।।
माँ दुर्गा से माँग लें , सिमरन का वरदान ।
चिंता दुख तक़लीफ़ से , ग़र बचना इंसान ।।
दुनिया से करवा दिया ,भक्तों का सम्मान ।
माँ ज्वाला ने तोड़कर,अकबर का अभिमान ।।
लाल चुनरिया ओढ़कर,घर आतीं हर साल ।
माँ कंजक के रूप में , करने मालामाल ।।
बिन तेरे माँ शारदा , जीवन था बेनूर ।
तेरी किरपा से हुए , परमहंस मशहूर ।।
माँ आतीं नवरात्र में , जग करने आबाद ।
पूरी करने के लिए ,हर दिल की फरियाद ।।
होने पर जो गलतियाँ, रखता दिल को साफ़ ।
मैया उस इंसान को,कर देती हैं माफ़ ।।
हे दुर्गे माँ आपके , चरणों की मैं धूल ।
याद कराना ये मुझे , जब भी जाऊँ भूल ।।
दिल में रखता जो सदा,श्रद्धा भक्ति अपार ।
खुद आतीं मां कालका,चलकर उसके द्वार ।।
ब्रम्हा जी जग रचयिता,नहीं मानता कौन ।
माँ काली के सामने , रहते वो भी मौन ।।
मैया बनते हैं स्वयं , उसके बिगड़े काम ।
ज्योत जलाए आपकी जो नित सुबहो शाम ।।
अर्धकुँवारी भावनी , रखना मेरा ध्यान ।
दूल्हा बन संसार से , जब जाऊँ शमशान ।।
माने ये संसार सुर ,उनको कितना खास ।
लेकिन बारह राशियाँ , माँ काली की दास ।।
जकड़े जाती रात दिन , लालच की जँजीर ।
माँ जगदम्बा पार्वती , हर लो मेरी पीर ।।
यूँ करता संसार माँ , तेरी चर्चा आज ।
जिसके दिल में हो दया,करे दिलों पर राज ।।
अपना कर सुर देख लो , माँ दुर्गा की रीत ।
तुमको जनजन से स्वयं, यहाँ मिलेगी प्रीत ।।
माँ हों जब विकराल तो, चुप्पी धरते शेर ।
दुष्टों को इक वार से , माँ कर देतीं ढेर ।।
माँ दुर्गा के सामने मत करना सुर भूल ।
गुल रखतीं इक हाथ तो , दूजे रखें त्रिशूल ।।
सुरेश मेहरा/दिल्ली
प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस