आशिक़ी
आशिक़ी में बेवफ़ाई ने रुलाया है बहुत।
मुस्कुरा के दर्द होठों ने छुपाया है बहुत।
हो रही बारिश सुलगती हैं यहाँ तन्हाइयाँ
बेवफ़ाई की मशालों ने जलाया है बहुत।
धूप यादों की जलाकर राख मन को कर रही
खोखली दीवार को हमने बचाया है बहुत।
फूल कह कुचला किए वो और कितना रौंदते
जख़्मअपने क्या दिखाएँ दिल जलाया है बहुत।
आज नश्तर सी चुभीं खामोशियाँ जाने जिगर
नफ़रतों की धुंध सीने से मिटाया है बहुत।
वक्त की आँधी बुझा पाई न दीपक प्यार का
बेरुखी ने प्यार कर हमको सताया है बहुत।
अश्क छाले बन अधर पर फूट 'रजनी' रो रहे
ख़ार से झुलसे लबों को फिर हँसाया है बहुत।
डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत
डाटला एक्सप्रेस
संपादक:राजेश्वर राय "दयानिधि"
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