दयानिधि अब तो लो अवतार...! महासंग्रह 2018 का हुआ लोकार्पण


रिपोर्ट:-रोशन कुमार


गाजियाबाद: पत्रकार एवं कवि राजेश्वर राय द्वारा लिखित उनकी चर्चित कृति "दयानिधि अब तो लो अवतार...!" के ई- वर्जन का लोकार्पण शुक्रवार दिनांक 05 अप्रैल को उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके निवास स्थान बी-59, गरिमा गार्डन, साहिबाबाद, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश पर सरस्वती माँ के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन के साथ पत्रकार और कम्प्यूटर विशेषज्ञ श्री वीरेन्द्र सिंह के हाथों किया गया। इस अवसर पर श्री राय के मित्रों, पारिवारिक सदस्यों के अलावा मीडिया के भी दोस्त उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख हैं अखिलेश पाण्डेय, रामनाथ प्रजापति, सुनील पाण्डेय, पंकज तोमर, सुनील कुमार, रोशन राय,शाहनवाज, जगदीश मीणा, अजय कुमार एवं अभिषेक झा। संक्षिप्त किन्तु एक शानदार कार्यक्रम में पुस्तक पर खुलकर लोगों ने अपने विचार और सुझाव रखे। ग़ज़लकार सुनील पाण्डेय ने अपनी ग़ज़लों से माहौल को ख़ुशनुमा बनाया। इस पुस्तक के डिजाइनर और मेकर वीरेन्द्र सिंह ने इसके ई वर्जन के हर पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए इसे लोकार्पित किया। इसके रचयिता कवि राजेश्वर राय ने इस पुस्तक के डिजाइनर श्री वीरेन्द्र सिंह का पटका ओढ़ा तथा माल्यार्पण कर सम्मान करते हुए इसके निर्माण और यात्रा के दरमियान घटी तमाम बातों को उपस्थित लोगों के साथ शेयर किया और साथ ही यह भी कहा कि बिना वीरेन्द्र जी के मैं इस कार्य को कभी नहीं कर पाता, इन्होंने हमारे ख्वाबों को ताबीर दी।



'दयानिधि' के पद राजेश्वर राय की खुद अपनी सोच और कहने के तरीके पर आधारित हैं। या यूँ कहें कि ये उनकी हिन्दी पद्य साहित्य को एक अभिनव देन हैं, जिसमें उन्होंने किसी भी स्थापित परंपरा का न तो अनुसरण किया है और ना ही विषयों, बिंबों की नकल, इसमें जो कुछ भी है वो इनका अपना है। जिसे पढ़कर ही महसूस किया जा सकता है। ये रचना (सिरीज) पूर्व में चार भागों में लगभग 800 (आठ सौ) पदों के साथ छपकर पिछले पांच सालों में आ चुकी है, बताते चलें कि जहाँ इसका एक बड़ा प्रशंसक वर्ग रहा है वहीं इसके आलोचकों की भी कमी नहीं रही है। जिसके कारण सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मिडिया तक में इसकी निरंतर चर्चा रहती है। इसके इन्हीं 800 पदों की श्रृंखला में से से 575 (पाँच सौ पचहत्तर) पदों को सलेक्ट करके थोड़े बहुत इस्लाह (संशोधन) के साथ इसके रचयिता ने नये कलेवर और तेवर के साथ एक जगह ई- बुक के रूप में इसे महासंग्रह के रूप में पेश किया है। वैसे भी आज जमाना इंटरनेट का है सो ऐसे में इसकी पहुँच यूनिवर्सल हो जायेगी, दुनिया के किसी भी कोने में मात्र एक क्लिक के माध्यम से इसे आसानीपूर्वक पढ़ा जा सकेगा।



पुस्तक की रूपरेखा:


इस पुस्तक को 3 भागों में बांटा जा सकता है, प्रथम भाग में इसका परिचय, भूमिका और कवि की बड़ी ही गंभीरता और साफ़गोई के साथ बयान की गयी 28 पृष्ठों की आत्मकथा है जो कहीं-कहीं मुख्य पुस्तक पर भी हावी होती दिख रही है, जो पाठक को रुककर उसे पुन: पुन: पढ़ने और सोचने पर विवश करती है। पारंपरिक आत्मकथाओं से इसे अलग कहा जा सकता है, पाठक इसे पढ़ते समय स्वयं को खुद कवि जैसा ही महसूस करने लगता है यानि एक अनजाना सा रिश्ता कायम कर लेता है।


 


पुस्तक के द्वितीय भाग में इसके 575 पदों की श्रृंखला को रखा जायेगा, और तृतीय यानि अंतिम सेग्मेंट में इसे एक अभिनंदन ग्रंथ भी कहा जा सकता है। इस भाग में लोगों के आये शुभकामना संदेशों को संरक्षित किया गया है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह दिखती है कि ये सारे संदेश स्वत:स्फूर्त और दिल से लिखे गये हैं, ये सही मायने में रचना के प्रशंसक लोग हैं जो निरंतर इसके पाठक रहे हैं न कि ये इरादतन लिखवाये गये संदेश हैं। इस तरह यह कुल 452 (चार सौ बावन) पृष्ठों में जाकर पूरी होती है। यहां बताना यह भी जरूरी हो जाता है कि किताब के बीच-बीच में तमाम अवसरों के फोटो कैप्शन सहित संजोए गये हैं जो इसकी सुन्दरता, रोचकता और उत्सुकता को बरकरार रखते हैं। जिसका परिणाम ये होता है कि एक बार पुस्तक खोलने के उपरांत पाठक पूरी बुक देखने का मोह नहीं छोड़ पाता।



लम्बी रही इसके निर्माण की प्रक्रिया:


पुस्तक के रचयिता श्री राय ने बताया कि इसे इस रूप में लाने के लिए करीब दो वर्षों का समय लगा, सर्वप्रथम इसकी टाइपिंग में गल्तियां ना हों इस बात के मद्देनजर मैंने खुद इसे टाइप करने का बीड़ा उठाया, जिसका परिणाम ये रहा कि इसकी प्रूफ रीडिंग का झंझट जाता रहा। बावजूद इसके भी इसे बार-बार पढ़ा गया जिसके नाते इसमें त्रुटियाँ न के बराबर बचीं। फिर चित्रों के चयन, शुभकामनाओं की टाइपिंग - एडिटिंग के साथ-साथ इनका संयोजन काफी कठिन और टाइम टेकिंग रहा। परन्तु मेरी और वीरेन्द्र सिंह की ट्यूनिंग ने इसमें कोई कोताही नहीं आने दी। कम्प्यूटर एनालिस्ट वीरेन्द्र सिंह ने कहा कि ये पुस्तक मेरे जीवन के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई है, इसे अंजाम तक पहुंचाकर मैं अपने आपको एक विजेता जैसा अनुभव कर रहा हूँ।


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