दयानिधि अब तो लो अवतार...!
राजेश्वर राय 'दयानिधि'
पेज 02/दयानिधि महासंग्रह
कुल पद 70/क्रमांक 81 से 150
पाप बढ़ा जब-जब धरती पर आये बारंबार
एक बार फिर इस धरती को है तेरी दरकार
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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81-जीजा
"साली आधी घरवाली" कह जीजा मुझे ताकता है,
अपने पद-पैसे-पौरुष की डींगें ख़ूब हाँकता है,
मम्मी-दीदी का मज़ाक में उसको लेने का फल है-
अब तो अंगवस्त्र-बिस्तर-लैट्रिन में मेरे झाँकता है,
दिल करता है पंजा मारके उसका मुँह नोंचूं-खाऊँ-
जब दिखता उसकी आँखों में है सूअर का बार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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82- लव मैरिज
रूप-रंग का कुछ घमंड कुछ पढ़ने-लिखने का प्राइड,
घर से भाग बन गयी चिकने एक निखट्टू की ब्राइड,
चूस के उसने कुछ दिन में धंधे पर मुझको बिठा दिया-
सो मैं जा भी नहीं सकूँ अब लौट आज घर की साइड,
गोद बदलती रहती हूँ हर दिन ना जाने कितनों की-
यही सज़ा है मिरी छोड़ने का अपना घर-बार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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83- परस्त्रीगमन
जब दूजी को छूआ था तो अपनी नहीं सुहाती थी,
लेकिन रखुई छोटी-छोटी बातों पर रिसियाती थी,
अपनी को मारा-पीटा जैसै भी इस्तेमाल किया-
जो पहनाया पहनी जो दे दिया उसे हंस खाती थी।
अपनी से ज्यादा खुशियां हैं नहीं कहीं ये तब जाना-
जब हर दर पे देख लिया हमने अपना मुँहमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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84- बेवफ़ाई 29.09.2017
मुझे छोड़कर मत जाओ प्रियतमा हमारी बेरुख़ बन,
मेरे दिन फिर से आयेंगे तब चलना तुम भी बन-ठन,
माना आज मुफ़लिसी मुझपे जीवन भी उलझा उलझा-
पर ये समय दिखाने का है तुमको मुझसे अपनापन,
इन कंधों पर भार तुम्हारा तब तक मैं ढो सकता हूँ-
जब तक चल ना जाऊँ हो कंधों पर चार सवार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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85- सास की कुटाई
किसी सास में अब तक हमने माँ का रूप नहीं देखा,
इक्का-दुक्का छोड़ के है दुनिया का ये जोखा-लेखा,
वो भी कभी बहू थीं लेकिन बनते सास खींच डालीं-
अपने और पतोहू के दरम्यान नफ़रतों की रेखा,
थोड़ी बहुत कुटाई उन सासों की बहुत ज़रूरी है-
जिन्होंने बहुओं का जीना कर डाला है दुश्वार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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86- कवि
चार कवि आ धमकें तो बीवी तबियत से धोती है,
सो मेरी महफ़िल अब कुछ मय्यत के जैसी होती है,
मुझको-मेरे ज़ानिसारों को सिर्फ़ निठल्ला समझ के वो-
उन्हें देखते गुर्रा करके अपना आपा खोती.........है,
मुक्का सहकर मेहरारू का कवि मजमा लगवाता हूँ -
कारण, कवि बनने की खुजली से हूँ मैं.......लाचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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87- कवि
चाय-नाश्ता-पेप्सी-कोला-दारू-लंच कराता..........हूँ
तब मुश्किल से कविता सुननेवाला फाँस के लाता हूँ,
उस निरीह को अपनी गर्दभ धुन में ग़ज़लें चेंप सभी-
फिर दोबारा आने खातिर सौ ढंग से फुसलाता....हूँ,
कोमा में वे चले गये या तो 'इहबास' में भर्ती हैं-
मेरी शायरी के सदमें का जो हो गये शिकार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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88- कवि
शायर बनने की खुजली मुझको है उभर गयी जब से,
घर की अर्थव्यवस्था दरहम-बरहम मेरी हुई तब से,
दर-दर गीत सुनाने की चाहत में यायावर होकर-
फटहे धोती-चप्पल में हो गया फटीचर हूँ कब से,
"मेरे जैसा शायर अब तक नहीं धरा पर आया है"-
यही सोच ख़ुद पर आशिक़ हो शेखी रहा बघार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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89- कवि
मकड़ी के जालों जैसी कविताएँ रच के लाते हैं,
सुननेवालों के मन का मर्दन कर खूब सुनाते हैं,
दो ताली बज जाय वाह झूठी भी कोई कर दे तो-
कवि महोदय जहाँ भी देखो वहीं शुरू हो जाते हैं,
सौ में से निन्यानवे तो बस अनल राग में गाते हैं -
जिसकोे सुन श्रोता का जलता गुप्त जगह का बार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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90- कवि
सनद-मेडल खातिर भी पापड़ कई बेलने पड़ते हैं,
हुक्मरान-नौकरशाहों के ताप झेलने पड़ते हैं,
ग़ैरत गिरवी रखकर स्तुति-निंदा की उंगली पकड़े-
चापलूस बन जोड़-तोड़ के दॉव खेलने पड़ते हैं,
अपने को बस प्यार-प्रशंसा मिल जाये वो बेहतर है-
बाकी सनद-मेडल जाये अपनी माँ के भगद्वार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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91- नाराज़ गर्लफ्रैंड
फ्यूल-फोन-रेस्टोरेंटों का खर्चा कम हो जाता..........है
करवट बदल-बदल जो जागे, नाक बजा सो जाता...है,
फैशन-हेयरकटिंग-फिल्म-परफ्यूम आदि सब जोड़ो तो-
गर्लफ्रैंड रूठे तो बन्दा प्रॉफिट में तो जाता.............है,
काफ़ी ख़र्चा रूठी को लाइन पे लाने में लगता-
सो नाराज़ ही रहने दो तुम उस ससुरी को यार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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92- बुढ़ापा
वक्त जवानी का जो गुज़रा उसकी अपनी थाती थी,
कानी,कोतड़,लूली,लंगड़ी,बुढ़िया भी चल जाती थी,
तन में ताक़त, पर्स में पैसा जब तक पास हमारे था-
पूरी नारी ज़ात हमारे मन मन्दिर को भाती.......थी,
उमर बढ़ गयी, शूगर घेरा, तन की जान जा चुकी है-
अब तो बस बटखरा झुलाये फिरता हूँ......मनमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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93- नेतारूपी घरियार
सत्तर वर्ष हो गये पर पूअर का प्रोग्रेस सिफर रहा,
भाषण-लेखन-नारों में बस इस मुद्दे का जिकर रहा,
तेल बिना तलवे बच्चों के जिस कंट्री में सूख गये-
वहीं शुद्ध घी मूर्ति-चिता पर नदियों जैसा बिखर रहा,
पय-पूरी-पूआ-पुलाव-पनघट घी घोंट घपुच्चर बन-
लील देश को गये हैं कुछ नेतारूपी घरियार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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94- कवि
मंच मुझे मिल जाये तो मुश्किल से उसे छोड़ता हूँ,
कविता बेदम, वाणी मद्धम तब भी तान तोड़ता हूँ,
झूठे संस्मरण, चुटकुल्ले, आँखों में आँसू भरकर-
ड्रामा करके भावुकता का महफ़िल साथ जोड़ता हूँ,
अपनी सुना झुका सर चुपके से कल्टी हो जाता हूँ-
बाकी कौन जा रहा सुनने औरों की........सुरधार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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95- नितिनियंता 02.10.2017
नीति नियंताओं की नाकामी से कंट्री जूझ रही,
दर्द सुनानेवाली ड्योढ़ी नहीं एक भी सूझ रही,
शासन और प्रशासन अपना घर भरने में बीजी हैं -
जनता की ज़हमत कोई सरकार नहीं है बूझ रही,
सारे संकट के स्वामी तो संसद में ही शोभित हैं -
वहीं से सत्तर वर्षों से कर रहे हैं........बंटाधार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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96- बेवफ़ा औरत
एक पुरुष मेहनत मज़दूरी करके जिसको था पाला,
दारुण दुख सह करके झाड़ा जिसके जीवन का जाला,
अंकशायिनी-लालचवश वो स्त्री बन करके..........तेरी-
पति-परिवार छोड़ कहती जब पहना दो तुम वरमाला-
अपना सबकुछ छोड़ तेरे संग भाग रही जो औरत है-
तेरी वफ़ादार होगी तू करना मत...............यतबार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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97- नारी शोषण
"जहां नारियां पूजी जातीं वहीं देवता रहते है",
दुनिया के हर धर्मग्रंथ ये बात एक स्वर कहते हैं
पर इतिहास अगर स्त्री का कभी उठाकर देखो तो-
इनकी आंखों से रक्तिल आँसू ही अविरल बहते हैं,
पूजा क्या बस प्रजनन-अय्याशी का इनको माल समझ-
होता आया है इनके संग...............शोषण-अत्याचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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98- पशुरूपी मानव
एक पशू को देखो तो उसकी भी जीवनशैली है,
पर मनुष्य की सोच-समझ-सूरत ही सारी मैली है
जहां पशू मन-मुंह-ऋतु पाये बिन सहवास नहीं करता-
वहीं पुरुष में जाने कैसी काम अग्नि की थैली है,
उसके लिए नहीं वर्जित है चाहे स्त्री कोई हो-
बच्ची-बुढ़िया-रजस्वला-पागल-सनकी-बीमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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99- जनसेवक
बोर्ड एनजीओ का गाड़ी पर गले में सोना पारद है,
ठाले-झगड़ालू-भसण्ड लड़कों की छोटी गारद है,
बिन पूँजी बिजनेस करनेवाले शातिर 'जनसेवक' जी-
बोलचाल में माहिर थे सो कृपा किये माँ शारद है,
वैसे भाषण सुनने पर तो लगता है जननेता हैं -
लेकिन कई किस्म के वो करते हैं.....दुर्व्यापार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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100- लवमैरिज
मां-बापू-रिश्तेदारों की च्वॉइस पहले चलती थी,
उनके आशीषों से शादी खूब फूलती-फलती थी
'लव मैरिज' का नया चलन चल गया ज़माने में जबसे-
तबसे पशेमान पीढ़ी है,पहले हाथ न मलती थी,
माचोमैन-मनीवाला दुल्हा लड़कियां ढूँढ़ती अब-
लड़के ढूंढ रहे डिक्की-बोनट में सिर्फ उभार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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101- परस्त्री प्रेम
भरीपुरी अपनी थाली पर लात मारते रहते हैं,
अपनी को ओखद दूजी को टंच माल ये कहते हैं
सूरत-सीरत-पढ़ी-लिखी-कर्मठ-विद्वान भले ही हो-
फिर भी अपनी तज दूजे की सड़ियल जूती सहते हैं,
आदिकाल की आदत अब तक छूटी नहीं है पुरुषों की-
अपनी रानी छोड़ कानियों पर ये बाँटें..............प्यार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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102- लव मैरिज
प्रेम व्याह है फिर भी दोनों सेटिंग कर रहे भर भरके,
कहने को हैं साथ साथ पर ज़िन्दा हैं वो मर मरके,
सात जन्म के बन्धन का लगता है जन्म सातवां है-
सो अब चला चली की बेला कहाँ जी रहे डर डरके,
शादी इनकी समझौतों की सरकारों सी घिसट रही-
तेगा है तलाक की लटकी गायब.......प्यार-दुलार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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103- यूपी विस चुनाव 2017
माया के मुस्लिम मंत्रा की सत्रह में अब रेल हो गयी,
यूपी के चुनाव में उल्टी हर दिग्गज की खेल हो गयी
रंगा-बिल्ला की जोड़ी को जंग लग गया जम करके-
उनकी खटिया खड़ी हुई, सयकिल की फिर्री फेल हो गयी,
तुष्टीकरण-जातिगत जोखिम का कीचड़ भर गया था जो-
उसमें कमल खिला,योगी सा आया है.............दक्कार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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104- ज़ालिम मनुष्य
आपा-धापी जीवन में बढ़ गयी भले मजबूरी हो,
फिर भी ध्यान धरो जब संबंधों में आई दूरी हो,
प्यार-मोहब्बत की ग्रीसिंग, हंसियों का फव्वारा लेकर-
शादी की सर्विसिंग कराओ जब-जब बीवी घूरी हो,
गर ज़मीन दिल की बंजर ये होने लगे बेरुख़ी से-
प्रेम उर्वरक मिला तभी कर दो दोमट-मटियार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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105- बिन्दास राज
पुत्री चार, पुत्र दो मेरे, बीवी बेस्ट बगल में..........है,
कविता लिखना, पत्रकारिता शामिल मेरे शगल में है,
कभी-कभी फिशफ्राई के संग बीयर या दो पैग लगा-
मौज आज में लेता हूँ ना जीवन मेरा कल में.......है,
गाड़ी-गहना-गृह-गोरू सब खेत बिक गया वीलेज का-
फिर भी मैं बिन्दास 'राज' अब भी हूँ........सदाबहार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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106- भूतपूर्व छिनरे
अपनी तरुणाई में ये भी छुट्टे साँड़ सरीखे थे,
माल पटाने के हज्जारों धाँसू नुस्खे सीखे थे,
हम लोगों के फैशन पर नुक्ताचीनी करनेवाले-
इन बुड्ढों पे वस्त्र ज़री के सेंट-अतर भी तीखे थे,
ज्ञान सुधा बरसाने वाले इन बुड्ढों पर हँसता हूँ -
जब ये भूतपूर्व छिनरे सिखलाते शिष्टाचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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107- अतिक्रमण
रैंप बना के रोड पे सबसे पहले क़ब्ज़ा करते हैं,
फर्स्ट फ्लोर पर बीम बनाकर उसमें छज्जा भरते हैं,
नाली और हरित पट्टी को पाट बना करके गैरेज-
नक्शे से ज़्यादा ऊंचा करने से भी ना डरते हैं,
छज्जे पे छज्जा छा करके शहरी सभ्य बने हैं जो-
वो फिफ्टी गज पर कर लेते हंड्रेड गज तैयार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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108- परिवारवाद
जो जिस जगह जम गया है वो अपना वंश बढ़ाता है,
प्रतिभाशाली को भी हरग़िज़ ऊपर नहीं चढ़ाता है,
पद-पैसा-पतवार देश की जो भी हाथ लगी उसके-
टुकड़ा भी माँगो उसमें तो पट्टी बहुत पढ़ाता है,
फिल्मी दुनिया, राजनीति से लेकर व्यापारी तक सब-
क़ब्ज़ा करके बैठे हैं, कुछ मुट्ठी भर परिवार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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109- बेरोज़गारी
दिल्ली दहल रही है हर दिन रेप-राबरी-रोड रेज़ से,
नये लवंडे बिगड़ रहे हैं डिस्को-डीनर-डांस क्रेज़ से,
पढ़े-लिखे पर प्लेसमेंट की बड़ी प्रॉब्लम आन पड़ी-
कारण नौकरियों का टोटा, गुज़र रहे सो बुरे डेज़ से,
ऐसे में अवसादग्रस्त हो ये अपराधों को करके-
त्रस्त कर दिये हैं सारा दिल्ली से एनसीआर।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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110- फिल्मी फ़ालिस
गाली में स्टोरी फिट कर पेश कर रहे फिल्मों को,
सेक्स पिरोकर दिखा रहे हैं ये समाज के ज़ुल्मों को,
अच्छे घर की महिलायें भी मुद्रा खातिर फिल्मों में -
हर कुकर्म कर रहीं बना उल्लू माँ-भाई-बल्मों को,
गर्व-संस्कृति को अपने,ये फिल्में फ़ालिस मार रहीं-
बाकी नाश कर रहा मूआ टीवी-वीसीआर।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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111- क़लम 13.10.2017
टूटे सपनों के शीशे चुभते थे मेरी आँखों.....में,
जान नहीं बाक़ी थी मेरी जब इन सरकश पाँखों में,
धूप धाक की भी धीरे-धीरे धीमी हो रही थी.....तो-
नहीं परिंदे वास कर रहे थे तब मेरी शाखों.......में,
तब अवसादों में हमने फिर थामी क़लम क़ायदे से-
अब रोटी-यश-वैभव सब दे रही है इसकी.....धार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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112- पोंगापंथी
सिंहासन पर बैठ सभी का भाग बाँचते रहते हैं,
धर्म-कर्म के डंडे से संसार हाँकते रहते हैं,
तंत्र क्रियाओं-फेंगसुई-कुंडली-हस्तरेखा से ये-
पोंगापंथी भक्तों का हर माल फाँकते रहते हैं,
ऐसे मठाधीश मुनियों को छोड़ करो मेहनत यारों-
घुग्घुर-घंटी-कंठी से ना होना है........उद्धार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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113- पंचमकार
मंदिर में मदिरा का सेवन अय्याशी भी देखी है,
अन्दर कूकर्मों का अड्डा बाहर दिखती नेकी है,
खान-पान-पॉवर खातिर कुछ ने है चोला ओढ़ लिया-
वही ख़ुदा ख़ुद बन बैठे हैं उनमें इतनी शेखी है,
मदिरा-माँस-मछलियाँ-मैथुन-मुद्रा के ये धुर लोभी-
जप-तप के बदले पालन करते हैं पंचमकार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
------------------------------------------------114- सन्तोष
"धरती एनफ नीड खातिर है, लेकिन ग्रीडी को कम है",
गाँधी की इस कही बात में सोचो तो काफी दम है,
गोधन-गजधन-बाजि-रतनधन मिट्टी हैं सन्तोषी को-
रहिमन की भी कही बात गाँधी जी के ही लम-सम है,
त्याग और सन्तोष नहीं तो पूरा कभी न पड़ने का-
कोहिनूर पा जाओ या मिल जाये शालीमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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115- आरक्षण
लगभग चौथाई शताब्दी पढ़ने में ही गवाँ.......दिया,
क्रैश कोर्स-डिग्री-डिप्लोमा-कोचिंग से भी रवाँ किया,
कई परिक्षाओं की रात दिवस तैयारी के ही......संग-
शादी की हसरत मारी, बंजर दिल को ना जवाँ किया,
मगर सिफ़ारिश-आरक्षण ने ऐसा पानी फेर दिया-
लगता है बिन रोज़गार रहना है मित्र......कुँवार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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116- ढंड-मंड घर
लेवै जाईं काव गाँव अब उहाँ भला का रक्खल हौ,
अधिया-तिकुरी खेत रहिगयल कटहर-आम न पक्कल हौ,
माई-दादा बूढ़-पुरनियां होय गइन कुछ संपरत ना-
कुल भाई परदेसी भइलीं बिगड़ घर कै शक्कल हौ,
लेवै जाईं ढंड-मंड बखरी या बिसुकलि गाय भइंसि-
या उजहल बगिया या लेवै जाईं हम बंसवार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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117- लल्ला
माई के दुलार में लल्ला कउनो लायक ना भइन,
ओनहीं कै शह पाइके घर से बाहर तक उखमज कइन,
पहिरि के निलिआवल बंडी, गमछा कै बान्हिं मुरेठा ई-
टोङ पकड़ि के लुंगी कै गाँयें भर घुमि सुरती खइन,
एक हरफ़ सरऊ के लिक्खै-बाँचै तक त आयल ना-
जिनगीभर कीनत रहनैं पिंसिल-चाँदा-परकार,
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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118- भौजी
पेट देखि भौजी कै स्मित पंडित पतरा भूलि गयन,
बड़का बाऊ साहेब चाहैं कइसे ओनसे होय मिलन,
आलू-ऊँखि केहू गोड़त हौ, केहु ढोवत बिन बोझ कहे-
केहु झूंकत हौ भट्ठा, केहु रोटी में ओनके देत मयन,
गदरायल कुल्ल्हा पे भौजी के पागल धीरज लाला-
लिक्खै खातिर दस बिस्सा होइ गयन खेत तैयार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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119- भौजी
कोना दाबे दाँतों में जब साड़ी का वो चलती थीं,
पायल की रुनझुन में भौजी सीधे दिल में हलती थीं,
चाबीपास-कमरपेटी से ले के भुजेदंड-टिकुली-
नथिया-हार-हुमेल पहन वो कितनों के दिल दलती थीं,
झुल्ला-नकबुल्ली-बेसर में उनके कितने बिसर गये-
कितने सनक गए जब पहनीं लंहगा गोंटेदार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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120- राज
पची न तब्बो खइहैं ऊ मुर्गा-मछरी-शुरुआ शाही,
खांसत-पादत भुकुर-भुकुर बीड़ी पीहैं गाही-गाही,
एक पैग पी लिहैं त पोंकिहैं चार-पाँच दिन तक जमि के-
तब्बउ अंतरे दिन ओनके दुइ-चार पैग दारू चाही,
बहुत बहिनियां 'राज' बुढ़ौती में आज़िज़ कइले हउवैं-
साँसि फुलै के बावजूद चपकय न हफ्तेवार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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121- जन्मभूमि
जिस घर को दादा जी ने था ख़ून-पसीने से सींचा,
बापू-चाचाओं ने चमका जिसको सबका मन खींचा,
हम भाई बँटवारा कर अब बस बैठे परदेसों में,
सो अब उसकी देखभाल से सबने अपना कर भींचा,
जिस बखरी में बचपन बीता, पढ़ा-लिखा-शादी भी की-
आज उसी पर उगे हुए भंगरैया और मदार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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122- एम्स_AIIMS
पूरे भारत से आते हैं हज्जारों पेशेंट यहाँ,
फेल हो चुके जिससे सारे सिस्टम मैनेजमेंट यहाँ,
कोई पड़ा कूड़े में कोई कराह रहा है सड़कों पर-
जाँच-दवा-विस्तर-हकीम का बिगड़ा ऐरेंजमेंट यहाँ,
एम्स बना यमराज का ठीया, जहाँ पे लाइन में लग के-
जैसे मरने का मरीज कर रहा हो इन्तेज़ार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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123- AIIMS
छोटे से एक्स-रे टेस्ट में हफ्तों समय निकलता है,
देख तड़पता भी मरीज डक्टरवा नहीं पिघलता है,
अपने कुत्ते को कीमोथेरैपी बेशक दे देगा-
लेकिन मनु का बच्चा उसको कुत्ते जैसा खलता है,
अस्पताल की शैय्या पाने का सपना ले एम्स में तुम-
धीरे-धीरे हो जाते हो टिकठी के हक़दार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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124- मंदबुद्धि 19-10-17
एक अधेंड़ लवण्डा अब भी खुद को युवा कहाता है,
सुना है वो अक्सर विदेश मालिश करवाने जाता है,
उसकी तो माता भी इसी सिलसिले से ही आयी थी-
जिस बपंश की बेल चढ़ा ये धुर लल्लू इतराता है,
माई चाह रही है बेटा पीएम बनके राज.....करे-
लेकिन मंदबुद्धि ये नहीं है किसी काम का यार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
-----------------------------------------------125- नारी सशक्तिकरण 20.10.17
प्रजनन से परहेज़,नहीं पय पिला रही हैं बच्चों को,
बिना बात के हाथ लगा देतीं अच्छे से अच्छों को,
छेड़छाड़ कानून-दहेज-घरेलू हिंसा वाले.......का-
करके दुरउपयोग फँसा ये रहीं निरीहों-सच्चों को,
सुट्टा-सेक्स-सुरा का सेवन ये उन्मुक्त कर रहीं अब-
जिससे तहस-नहस हो रहा है सारा.....लोकाचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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126- मंत्र
शादी में ना जाने कैसा मंत्र पढ़ा था वो........पंडित,
तीन दशक हो गये मगर मैरिज ना हुई मेरी खंडित,
बचपन से बेमन की वही सरंगी अब तक रेत रहा-
जिसे सफलतम शादी कह करता रहता महिमा मंडित,
लगता है पंडितवा ने प्रतिशोध लिया था कोई बड़ा-
ऐसी बांधी गाँठ कि पाया अब तक नहीं उखार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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127- गज़टेड अफ़सर
सोचा था गज़टेड अफसर बन नीली बत्ती पाऊंगा,
सरकारी सरमाया-सेलरी-रिश्वत जमकर खाऊँगा,
लेकिन फ्लाप हुआ तो मेरी वकालत भी ना चल पायी-
तब मैंने सोचा कि अब बस राजनीति में जाऊँगा,
ग्राम प्रधानी, ब्लाक प्रमुख के रस्ते आज विधायक बन-
मंत्री हूँ तो गज़टेड की है अण्डर मेरे..............कतार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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128- यादें
माँ ज़मीन थीं बाबू जी छत थे जीवन की बिल्डिंग में,
जब तक थे वे मस्त रहा जीवन की ज़ालिम फिल्डिंग में,
ना भविष्य की चिन्ता ना था वर्तमान का डर कोई-
तन-मन सराबोर था माँ के ममता रस की यिल्डिंग में,
माँ-बाबू तो चले गये पर उनकी याद नहीं जाती-
वो थे मेरी जीवन नैया के यारों कनहार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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129- फ्लैट
बियाबान में सुविधा बिन फ्लैटों का बनना जारी....है,
लेकर लोन खरीद रहे सब, किस्त चुकाना भारी......है,
बिजली-वाहन-विद्यालय-मेडिकल-पानी की किल्लत है-
बावजूद इसके भी परचेजर में मारामारी...............है,
पक्की झुग्गी से ज्यादा फ्लैटों को कुछ भी मत समझो-
ऊपर से मरते दम तक ना उतरे मुआ............उधार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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130- ज्योतिषाचार्य
लैपटाप लेकर हाथों में पहन डिजाइन के कपड़े,
भूत-भविष्यत-वर्तमान के निपटाते हैं ये लफड़े,
शब्दों के साहिर संसार खसोट रहे ये भ्रम फैला-
उनसे मूरख वो हैं जो पड़ते ज्योतिषियों के पचड़े,
खुद की बीवी हरजाई, बेटा बेशक़ नक्कारा हो-
पर जग खातिर बने फिरें ये ज्ञानी- प्रवचनकार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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131- अमीरी का असर
जिनसे बड़ी उम्मीदें थी वो भी ना साथ दिये मेरा,
छोड़ दिये कर झटके में दुर्दिन ने जब मुझको घेरा,
अपनेपन-ईमान-धरम की बातें अब ना भाती हैं-
जबसे ख़ूनी रिश्तों ने तक़लीफ़ों में था मुंह फेरा,
बोटी महकी है तो श्वान मुख़ातिब अब कुछ दिन से हैं-
जब उनको लग गया कि फिर भर रहा मेरा आगार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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132- कॉर्पोरेट
जनता का पैसा लेकिन बैंकों पर क़ब्ज़ा इनका है,
जल-जंगल-ज़मीन वाला इन पर तबियत से भनका है,
मुझसे ही मुझको लुटवाकर बन बैठे ये अरबपति-
जिसे देखकर आज हमारा माथा काफी ठनका है,
जनता को उसका हक़ हासिल ना होने देते हैं ये-
कॉर्पोरेट असल में हैं इक कपटी-पॉकेटमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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133- ब्राह्मण
शिखा नहीं सिर पर मेरे, है नहीं जनेऊ कन्धे.....पर,
जप-तप-नेम-धर्म च्युत होकर लगा पाप के धन्धे पर
वेश्यागमन-माँस-मदिरा के सेवन से परहेज़......नहीं-
ध्यान-योग से दूर, कृपा कर दो प्रभु मुझसे गन्दे पर,
द्रोण-वशिष्ट-भृगू-दुर्वाषा-बाण भट्ट की संतति मैं-
बाभन से बढ़ बंजारे की लगता.........पैदावार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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134- वोटर लिस्ट
वोटर लिस्ट वर्ष पूरे भारत में बनती रहती.......है,
"अबकी बार आख़री है" सरकार हमारी कहती है,
लेकिन ये फुलप्रूफ अभी तक ना बन पाने के कारण-
त्रुटियों से तक़लीफ़ें देती जिसको जनता सहती है,
मत देनें जायें तो मूड बिगड़ जाता है लोगों का-
जब वे यूज़ नहीं कर पाते अपना मताधिकार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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135- वोटर लिस्ट
वोट चुनावों में देने सज-धज कर गया मेरे........भाई,
मगर बल्दियत गलत मिली जब वोटर लिस्टें जँचवाई,
उलझ पड़ा अधिकारी से तो पुलिस बुला करके उसने-
शूटेड-बूटेड बॉडी मेरी उनसे जमकर...........धुनवाई,
असल बात ये थी कि मेरा नाम तो राजेश्वर ही था-
बाप पे पारस के बदले बस लिखा मिला गफ्फार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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136- साहित्यचोरी PLAGIARISM
डायलाग-स्टोरी-बुक कोई कविता चोरी करता,
थीम-थाट दूजे का चोरी करने को कोई मरता,
कोई पूरी फिल्म चुराकर फिर से उसे बना करके-
गीत और संगीत सभी कुछ चोरी का उसमें भरता,
चलन चुराने का साहित्य बहुत बढ़ गया ज़माने में-
हां, गिल्टी बस कभी कोई लिख देता है साभार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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137- आतंकी
आतंकी हर सिस्टम की पुंगी हैं आज बजा......डाले,
बम-बारूदों से पूरी धरती को दुष्ट सजा..........डाले,
कभी फोड़कर टीएनटी तो कभी फिदाइन बन अपने-
ज़ात-धर्म को सारी दुनिया में ये पतित लजा.....डाले,
कभी मुंबई में बम फोड़ें, कभी गिरायें ट्रेड सेंटर -
कभी उठाकर ये जहाज ले चले जायँ.....कंधार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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138- अबला 28.07.2017
जोरू की जूती के ज़ख्म जिगर पर उनके ज़िन्दा हैं,
कई विवाहेतर संबंधों पर उसके शर्मिन्दा हैं,
ऐसे कई जाननेवालों की फेहरिस्त पास मेरे-
जो अपनी पत्नी के ज़ुल्मों से बर्बाद परिंदा हैं,
कुछ लोगों के दर्द देखकर दहल हमारा दिल जाता-
जिन पर इन 'अबलाओं' ने ढाये लाखों आज़ार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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139- सबला 21.10.2017
कभी छोड़ बच्चों को भागें, कभी पती का ख़ून करें,
बन रखैल तोड़ें घर कितने, गोद किसी की सून करें,
सास-ननद के रोल में अत्याचार ढाह कर बहुओं पर-
शीतल माह जनवरी जैसा जीवन उसका जून करें,
बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं सभी जरायम पेशों में-
काहे को अबला रह गयी हैं, कहां से हैं लाचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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140- ज्योतिषी
कंधे पर बंदूक नक्षत्रों के रख ख़ूब चलाते हैं,
घाघ ज्योतिषी शनि की धमकी देकर माल बनाते हैं,
सन के पुत्र शनी लगता जैसे इनके बहनोई हैं-
जो इनके दबाव में आकर ही किरपा बरसाते हैं,
शनि जिनकी खुद मार रहे हैं उलट-पलट हर आसन से-
वो भक्तों का शनि से करवा रहे हैं..............पत्राचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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141- पलटवार
साँप पालने का जो शगल संभाले दिल में फिरते थे,
जिनके गुर्गों की दहशत में अच्छे-ख़ासे घिरते थे,
भस्मासुर उनकी खातिर बन गये वही आतंकी अब-
जो कल तक उनके चिरकुट चरणों में झुकते-गिरते थे,
जिन देशों ने इनकी नर्सरियाँ डालीं,पौधे रोपे-
आज उन्हीं आकाओं पे कर रहे ये पल्टीवार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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142- ख़ारिज़ दाखिल
जीते को मुर्दा करके ख़ारिज़-दाखिल कर जाता है,
"ज़िन्दा हूँ मैं" येे साबित करता किसान मर जाता है,
पट्टे-जीएस-तालाबों को भूमिधरी करके बिक्री-
करने के संग अनुदानों का चिट्ठा भी भर जाता है,
एक नहीं इस नेक काम में शामिल सारा सिस्टम है-
पटवारी-डीएम-एसडीएम से ले........तहसीलदार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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143- अछूत
भूखे रहकर अन्न उगाया जिनकी खातिर मर-मर के,
क़दमों में झुककर जीया जीवनभर जिनके डर-डर के,
बीवी-बच्चों के जिनके कचरा-पट्टी फेंका सदियों-
उनने ही जूते मारे हमको तबियत से भर-भर के,
वर्ष सैकड़ों से सेवा की जिनका गुह फेंका सर रख-
वो कृतघ्न हमको कहते हैं चूड़ा और........चमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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144- वक्तीमार
अपने को इस दुनिया का मैं दुखिया बन्दा कहता था,
ख़ामख़ाह इस नाजुक दिल पर भारी पीड़ा सहता था,
जब मैंने इतिहास पढ़ा तो ज्ञान चक्षु खुल गया मेरा-
पता चला दस्तूर यही है, बिलावजह मैं डहता था,
शिवि-दधीचि-दशरथ-दुर्योधन-राम-रहीम-करन-रावण-
कोई भी हो सब पर पड़ती रही है............वक्तीमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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145- फ्लैट
"रूम रेंट में फ्लैट ख़रीदो" पढ़ा यही विज्ञापन था,
परचेजिंग वो नहीं हमारी खुशियों का उद्यापन था,
घर का खर्च काटकर किस्तें भरना भारी पड़ा है तो-
लगता है जैसे वो मँहगाई मामी का ज्ञापन था,
फ्लैट ख़रीदा लेकिन रहने से ज्यादा बाहर रहकर-
किश्त जुटाता भटक रहा हूँ मैं........दीवानावार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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146- सुनार
प्रतिशत पाँच ब्याज धर पहले जितना पकड़ा देता है,
उससे दूने का सोना-चाँदी वो धरवा लेता............है,
नागपाश जैसे ब्याजों से जकड़ सदा आसामी को-
बिना धार वाले चाकू से उसको अक्सर रेता........है,
लिया सूद पर पैसा अपनी इज़्ज़त रखने को जिसने-
उसका सारा गहना लील गया है कुटिल......सुनार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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147- आतंकवाद
प्रूफ आइडी थैली में धर घर से रोज़ निकरता हूँ,
जीवन वीमा की किश्तें निर्धारित दिन पे भरता हूँ,
ना जाने कब बम-बारूदों से वो मुझे उड़ा डालें-
इसीलिए टेररिस्टों से मैं आते-जाते डरता........हूँ,
होगी जो पहचान तो चिथड़े बच्चों को मिल जायेंगे-
शायद कुछ मुआवज़े में भी पा जाये.......परिवार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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148- आयातित दूल्हा
उनकी नथुनी-चश्मे ने दुनिया में डंका बजा दिया,
हर क्वाँरे ने अपने दिल पर उनकी फोटो सजा दिया,
लेकिन टेनिसवाली को ना जाने कैसी सनक चढ़ी-
पाकिस्तानी चुन मेरे अपने बच्चों को लजा दिया,
सुन्दर-सुघर-सलोने साजिद-माजिद कितने हाज़िर थे-
फिर भी ढूँढ़ नहीं पायीं इनमें से एक............भतार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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149- ब्राह्मण
चरण वन्दना खत्म हुई यजमान बने दुश्मन जानी,
सदियों से जो सहज-सुलभ था बन्द हुआ दाना-पानी,
पहन जनेऊ जूठा माँजूँ, शौचालय भी साफ़ करूँ-
कारण आरक्षण से नौकरियां भी हमको पड़ी गँवानी,
हमको संरक्षण देनेवाले खुद दुर्दिन भोग रहे-
चाहे राजे-राजपूत हों या क्षत्रिय-भुमिहार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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150- तन्हा बुज़ुर्ग
पॉश एरिया में कोठी,खातों में पैसों का......रेला,
लेकिन साथ नहीं 'अपना' होने से बिगड़ा है खेला
भटक रहे भूतों जैसे बंगलों में मारे ये........बूढ़े-
जिससे तन्हाई में विकट हुई इनकी संध्या बेला,
कुछ मर गये दवा-दाना बिन, कुछ को नौकर निपटाये-
क्योंकि इन बूढ़ों के बच्चे बसे..............समन्दरपार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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राजेश्वर राय 'दयानिधि'/8800201131
प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस 06/02/2019