पर्यावरण पर "दयानिधि अब तो लो अवतार...!" से 08 पद


 


हर हर गंगे/पर्यावरण
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पाप बढ़ा जब-जब धरती पर आये बारंबार
एक बार फिर इस धरती को है तेरी दरकार
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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(1)-हर हर गंगे
राजा-परजा-मुनी-कवी गुन जिसके गाते आये हैं,
रिद्धि-सिद्धि-हरियाली-मौसम-मोक्ष इसी से पाये हैं,
अमृत जल से जलधि बनी कल-कल-छल-छल जो बहती थी-
उस गंगा पर हमने लाखों ज़ुल्म-ज़लालत ढाये हैं,
चीनी मिल-डिस्टिलरी-सीवर-टैनरियों का पानी हम-
बिना मुरौव्वत इसके अन्दर रोज़ रहे हैं डार।
दयानिधि अब तो लो अवतार......!
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(2)-हर हर गंगे
नालों से जो ज़हरीला जल बह गंगा में आता है,
उस दूषित जल से पेड़ों-पौधों को सींचा जाता है,
फिर जो अन्न-फूल-फल-सब्ज़ी उससे पैदा होती है -
उस घातक ख़ुराक को मानव और जानवर खाता है,
अनजाने में मीठा विष बेलौस ले रहे हम हर दिन-
ख़ुद के साथ-साथ नस्लों को भी कर रहे बिमार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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(3)-हर हर गंगे
क़िस्म-क़िस्म की सब्ज़ी से गंगा का अंचल सजता था,
कम लागत में लौकी-नेनुआ-टिण्डा-खीरा उगता था।
मीठे ख़रबूज़े-तरबूज़े का वो मौसम चला गया-
जब गर्मी में हरियाली से नदी किनारा फ़बता था,
पुलिस खा रही हफ़्ता,खनन माफ़िया बालू खोद रहे-
और अवैध क़ब्ज़ों से,सूख रही है इसकी धार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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(4)-सुलभ स्वच्छता
खाकर गुटका-चिप्स रोड पर रैपर रोज़ डालता हूँ,
घर का कूड़ा मैनेज करने का गुन नहीं पालता हूँ,
बीयर-पानी-सोडे की बोतल,दोना-पत्तल-पन्नी--
गाड़ी से बेलौस फेंकना हरगिज़ नहीं टालता हूँ,
एक संस्था सुलभ स्वच्छ दुनिया को करती डोल रही--
एक हूँ मैं जो जहाँ पा गया, दिया गन्दगी डार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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(5)-नेचर का नाश
दूह लिया धरती से जल,जंगल को ज़ालिम बन काटा,
कूड़े-कचरे-पशु अवशेषों से सड़कें पारक पाटा,
क़ब्ज़ा कर नज़ूल की भूमी प्लाट काटने की खातिर--
हरितपट्टियां हथियाकर कुएं-तालाबों को भाटा,
एक लुटेरे जैसा लूटा हमने धरती-अम्बर को--
सागर का सरमाया, नदियों का ले लिया कछार।
दयानिधि अब तो लो अवतार.....!
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(6)-प्रकृति का प्रतिशोध
पस्त प्रकृति प्रतिशोध ले रही,पिघल रहे सारे हिमखण्ड,
ज्वालामुखी उगलते लावा आज हो रहे काफ़ी चण्ड,
वर्षा-भूजल-नदियां-सागर सभी निगलकर ये मानव--
घूम रहा विक्षिप्त बना जैसे होे कोई अजगर सण्ड,
नेचर नष्ट हो रहा है,धरती हिल रही ज़लज़लों से--
मौसम-ऋतुयें रूठ रहीं, सूरज उगले अंगार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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(7)-स्वच्छता
स्वच्छ जगह में तन-मन-यौवन सभी सुरक्षित रहता है,
धर्म-कर्म की चर्चा पढ़ने-लिखने को मन कहता है,
सीलन-बदबू-सड़न-गलन बिखरी यदि यत्र-तत्र हो तो-
ऐसे आलम में दिमाग़ में ग़ुस्सा अविरल बहता है,
गर माहौल मलीन मिले तो मन में मिचली आती है-
साफ़ परिस्थितियों में ही आते हैं उच्च विचार।
दयानिधि अब तो लो अवतार...!
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(8)-पर्यावरण
मानव के कर्मों से बिगड़ा नेचर का नाड़ी-नब्ज़ा,
दूर-दूर तक ग़ायब होता चला जा रहा है सब्ज़ा,
बेदर्दी से लगा मशीनों को करता जा रहा मनुज-
डूब क्षेत्र-वन-बंजर-पर्वत-चारागाहों पर क़ब्ज़ा,
तापमान बढ़ रहा विश्व का बर्षा में सूखा छाया-
और हो रही जाड़े में अब, बारिश मुसलाधार।
दयानिधि अब तो लो अवतार....!
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राजेश्वर राय 'दयानिधि'
8800201131/9540276160
प्रस्तुति: डाटला एक्सप्रेस 25/1/19


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